aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shajar"
शदीद धूप में सारे दरख़्त सूख गएबस इक दुआ का शजर था जो बे-समर न हुआ
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल हैसाए में उस के बैठ के रोना फ़ुज़ूल है
बिछड़ के तुझ से न देखा गया किसी का मिलापउड़ा दिए हैं परिंदे शजर पे बैठे हुए
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा हैचिड़ियों को बहुत प्यार था उस बूढे शजर से
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थीउसी पे ज़र्ब पड़ी जो शजर पुराना था
बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पासइतना तो है कि आप का दामन भिगो सके
एक पत्ता शजर-ए-उम्र से लो और गिरालोग कहते हैं मुबारक हो नया साल तुम्हें
शजर ने पूछा कि तुझ में ये किस की ख़ुशबू हैहवा-ए-शाम-ए-अलम ने कहा उदासी की
मिरे हालात को बस यूँ समझ लोपरिंदे पर शजर रक्खा हुआ है
ग़मों से बैर था सो हम ने ख़ुद-कुशी कर लीशजर गिरा के परिंदों से इंतिक़ाम लिया
इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाएजिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए
सफ़र है शर्त मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरेहज़ार-हा शजर-ए-साया-दार राह में है
हर शख़्स पर किया न करो इतना ए'तिमादहर साया-दार शय को शजर मत कहा करो
न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहोशजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है
पर्वाज़ में था अम्न का मासूम परिंदासुनते हैं कि बे-चारा शजर तक नहीं पहुँचा
जम्हूरियत का दर्स अगर चाहते हैं आपकोई भी साया-दार शजर देख लीजिए
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोएशजर गिरा तो परिंदे तमाम शब रोए
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या हैये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँथकन उतार के तू किस तरफ़ रवाना हुआ
थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल'मैं बैठता तो मिरा हम-सफ़र चला जाता
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