aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shakebaa"
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सकाहम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका
कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायदआईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज देतितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँआँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूहदेखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ कोज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआपढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में
ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसेतमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगाजिसे नफ़रत है उस के आदमी से
जाती है धूप उजले परों को समेट केज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के
मुझे गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरूँजिस तरह साया-ए-दीवार पे दीवार गिरे
पहले तो मेरी याद से आई हया उन्हेंफिर आइने में चूम लिया अपने-आप को
ख़्वाबों की तरह आना ख़ुशबू की तरह जानामुमकिन ही नहीं लगता ऐ दोस्त तुझे पाना
यूँ तो सारा चमन हमारा हैफूल जितने भी हैं पराए हैं
मल्बूस ख़ुश-नुमा हैं मगर जिस्म खोखलेछिलके सजे हों जैसे फलों की दुकान पर
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा हैसंग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हमपहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी
भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठेहम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं
लोग दुश्मन हुए उसी के 'शकेब'काम जिस मेहरबान से निकला
वो अलविदा'अ का मंज़र वो भीगती पलकेंपस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
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