aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sham.a"
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीकरात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिएनज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरहमैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थीहमीं को शम्अ जलाने का हौसला न हुआ
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैंउधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त कीइस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा
आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुतकहिए जलती रहे या शम्अ बुझा दी जाए
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ूजाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
बुझ गई शम्अ की लौ तेरे दुपट्टे से तो क्याअपनी मुस्कान से महफ़िल को मुनव्वर कर दे
दिन अंधेरों की तलब में गुज़रारात को शम्अ जला दी हम ने
ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रातहँस कर गुज़ार या इसे रो कर गुज़ार दे
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगाशम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा
शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर थाअपने हिस्से की कोई शम्अ' जलाते जाते
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाजशम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
सुब्ह को खुल जाएगा दोनों में क्या याराना हैशम्अ परवाना की है या शम्अ का परवाना है
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुकागुज़री है रात शम्अ पे क्या देखते चलें
शम्अ माशूक़ों को सिखलाती है तर्ज़-ए-आशिक़ीजल के परवाने से पहले बुझ के परवाने के बाद
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