aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sham.a-e-khaakistar"
कौन गुज़रा है ये आँधियों की तरहशम्अ-ए-राह-ए-वफ़ा को बुझाते हुए
कहते हैं जिसे हुस्न वो है शम-ए-जहाँ-ताबकहते हैं जिसे इश्क़ वो परवाना है उस का
यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुलसफ़र-नज़ाद था अस्बाब मुख़्तसर रक्खा
मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुएशम्अ'-ए-ताबाँ न सही जलता हुआ दिल तो हुए
शम-ए-शब-ताब एक रात जलीजलने वाले तमाम उम्र जले
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थेपर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठेशाम आए और दिल के लिए कोई घर न हो
अलविदा'ई शाम आ पहुँची यहाँचुप है तू मेरा ख़ुदा होते हुए
शाम-ए-ग़म करवट बदलता ही नहींवक़्त भी ख़ुद्दार है तेरे बग़ैर
अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैंकोई तस्वीर हो जैसे अधूरी
टूट कर मय पे यूँ गिरी तौबाजैसे परवाना शम-ए-महफ़िल पर
ऐ शाम-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही देमैं तेरे साथ साथ रहा घर नहीं गया
तन्हा तिरे मातम में नहीं शाम-ए-सियह-पोशरहता है सदा चाक गरेबान-ए-सहर भी
शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थीआप आए तो मुझ को याद आया
ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनीजो रौशनी कि शाम-ए-सवाद-ए-वतन में था
आज भी शाम-ए-ग़म! उदास न होमाँग कर मैं चराग़ लाता हूँ
जैसे मुमकिन हो इन अश्कों को बचाओ 'तारिक़'शाम आई तो चराग़ों की ज़रूरत होगी
बुझ गई कुछ इस तरह शम्-ए-'सलाम'जैसे इक बीमार अच्छा हो गया
क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र'इक शम-ए-राह-गुज़र कि सहर तक जली भी है
शम्-ए-ख़ेमा कोई ज़ंजीर नहीं हम-सफ़राँजिस को जाना है चला जाए इजाज़त कैसी
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