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शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
कैसा ये दिन है जो नहीं लाता है रू-ब-शाम
कैसी ये शब है जिस की सहर ना-पदीद है