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शेर
ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला
'शनास' फिर कहीं मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू हुए हम
फ़हीम शनास काज़मी
शेर
जाने कितने ही शनावर इश्क़ के दरिया में डूबे
कैसे बचता मैं भी उस दरिया से जो प्यासा बहुत है