aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sharbat-e-vasl"
आशिक़ को देखते हैं दुपट्टे को तान करदेते हैं हम को शर्बत-ए-दीदार छान कर
सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़ेशर्बत-ए-दीदार जूठा हो गया
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स नेखट्टा तमाम शर्बत-ए-दीनार कर दिया
गर्म चाय पी है तेरी याद कीतिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का
यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगाशर्बत-ए-दीद से सरशार किया जाएगा
जाता है मिरा जान निपट प्यास लगी हैमंगता हूँ ज़रा शर्बत-ए-दीदार किसी का
ग़ैर को शर्बत-ए-दीदार मुबारक तेराअब तो पानी भी पिएगा न तिरे घर का कोई
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईंतिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का
कहना किसी का सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल नाज़ सेहसरत तुम्हारी जान हमारी निकल गई
अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसेवो ताज़ा-दम रहा मुझ को निढाल कर के भी
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्लऐसे आने से तो बेहतर है न आना शब-ए-वस्ल
हिज्र के छोटे गाँव से हम ने शहर-ए-वस्ल को हिजरत कीशहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर ख़्वाबों को पामाल किया
किस से अब आरज़ू-ए-वस्ल करेंइस ख़राबे में कोई मर्द कहाँ
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रातहाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वालेये भी कोई वक़्त है हया का
हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीबपिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक
शब-ए-वस्ल की क्या कहूँ दास्ताँज़बाँ थक गई गुफ़्तुगू रह गई
यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनोंये मरहले एक से कड़े हैं
रेल पर यार आएगा शायदमुज़्दा-ए-वस्ल आज तार में है
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहोदूसरी बात दूसरा मतलब
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