aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shariif"
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गईइक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
लहू-लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तोशरीफ़ लोग उठे दूर जा के बैठ गए
ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्तवो शख़्स था ज़ियादा मगर आदमी था कम
'ख़ालिद' मैं बात बात पे कहता था जिस को जानवो शख़्स आख़िरश मुझे बे-जान कर गया
आसमाँ झाँक रहा है 'ख़ालिद'चाँद कमरे में मिरे उतरा है
तू जून की गर्मी से न घबरा कि जहाँ मेंये लू तो हमेशा न रही है न रहेगी
नाकाम हसरतों के सिवा कुछ नहीं रहादुनिया में अब दुखों के सिवा कुछ नहीं रहा
तुम ख़ुश रहो हमारी दुआ है तमाम-उम्रअपनी तो ख़ैर जैसी भी गुज़री गुज़र गई
आज कुछ रंग दिगर है मिरे घर का 'ख़ालिद'सोचता हूँ ये तिरी याद है या ख़ुद तू है
आँख किस लफ़्ज़ पे भर आई हैकौन सी बात पे दिल टूटा है
आज से इक दूसरे को क़त्ल करना है हमेंतू मिरा पैकर नहीं है मैं तिरा साया नहीं
शरीफ़ लोग कहाँ जाएँ क्या करें आख़िरज़मीं चीख़ती फिरती है आसमाँ चुप-चाप
ज़ख़्म रिसने लगा है फिर शायदयाद उस ने किया है फिर शायद
वो तो गया अब अपनी अना को समेट लेऐ ग़म-गुसार दस्त-ए-दुआ को समेट ले
गुलों ने काँटों के छेड़ने पर सिवा ख़मोशी के दम न माराशरीफ़ उलझेंगे गर किसी से तो फिर शराफ़त कहाँ रहेगी
तवील रात भी आख़िर को ख़त्म होती है'शरीफ़' हम न अँधेरों से मात खाएँगे
बस्तियाँ तू ने ख़लाओं में बसाईं भी तो क्यादिल के वीरानों को देख इन को भी कुछ आबाद कर
ग़ुनूदा राहों को तक तक के सोगवार न होतिरे क़दम ही मुसाफ़िर इन्हें जगाएँगे
पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़ता-कुजा ख़ातिर-ए-वज़ी-ओ-शरीफ़
गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगीजब कोई कली जौर ख़िज़ाँ के न सहेगी
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books