aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shauhar"
ख़ुश-नसीब आज भला कौन है गौहर के सिवासब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है शौहर के सिवा
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दूँतू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर
बोलीं बेगम मौत के पंजे में शौहर आएगाअब दुपट्टे का नहीं टोपी का नंबर आएगा
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बनेतू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिएकहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा हैन पूरे शहर पर छाए तो कहना
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार यादमुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गयाजिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहींशब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
धोका था निगाहों का मगर ख़ूब था धोकामुझ को तिरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमीफिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती रहीबड़े ख़ुलूस से हम ए'तिबार करते रहे
इक उम्र तक मैं उस की ज़रूरत बना रहाफिर यूँ हुआ कि उस की ज़रूरत बदल गई
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोईजो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला
एक रौशन दिमाग़ था न रहाशहर में इक चराग़ था न रहा
तारों का गो शुमार में आना मुहाल हैलेकिन किसी को नींद न आए तो क्या करे
न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जातीये ज़िंदगी है हिसाबों से जी नहीं जाती
ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँहसरतों में शुमार होता है
अजीब बात है दिन भर के एहतिमाम के बा'दचराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बा'द
दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ेंदो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले
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