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शेर
दिल-ए-वारफ़्ता-ए-दीदार की अल्लाह रे मह्विय्यत
तसव्वुर में तिरे वो तेरी सूरत भूल जाता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
शौक़-ए-दीदार का आलम वो कहाँ है कि जो था
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
ज़िंदगी मर्ग-ए-तलब तर्क-ए-तलब 'अख़्तर' न थी
फिर भी अपने ताने-बाने में मुझे उलझा गई