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शेर
देख लिया क्या जाने शाम की सूनी आँखों में
झील में सूरज अपनी सारी लाली डाल गया
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
शेर
ज़ात की नरमी ज़ेहनी ठंडक शफ़क़त सारी दुनिया की
उस ने रख दी मस्जिद दिल में जग की सारी माओं में
आफ़ताब शाह
शेर
सुनी अँधेरों की सुगबुगाहट तो शाम यादों की कहकशाँ से
छुपे हुए माहताब निकले बुझे हुए आफ़्ताब निकले
अक़ील नोमानी
शेर
प्यार करने वालों का सिर्फ़ एक सहरा है
सारे शहर उस के हैं सारी बस्तियाँ उस की
मुज़फ़्फ़रुन्निसा नाज़
शेर
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास
साग़र आज़मी
शेर
फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं
मस्जिदें सूनी पड़ी हैं भट्टियाँ आबाद हैं