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शेर
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
अपने रहने का मकाँ दे डालते मज़दूर को
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
क्या मुसाफ़िर के तईं शिद्दत-ए-बाराँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
वक़्त-ए-नज़्ज़ारा न रो कहते थे ऐ चश्म तुझे
शिद्दत-ए-गिर्या से ले ख़ाक न सूझा, देखा
ख़्वाजा हसन 'हसन'
शेर
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
शेर
बहुत हसीन थी दुनिया बहुत ख़राब है ख़ल्क़
शिकस्त-ए-ख़्वाब से पहले शिकस्त-ए-ख़्वाब के बाद
मुईद रशीदी
शेर
ये सब रंगीनियाँ ख़ून-ए-तमन्ना से इबारत हैं
शिकस्त-ए-दिल न होती तो शिकस्त-ए-ज़िंदगी होती
क़ाबिल अजमेरी
शेर
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
शेर
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का कुछ उन को ग़म नहीं
हम तो शिकस्त-ए-अहद-ए-वफ़ा से मलूल हैं