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शेर
रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
दैर से बेहतर है काबा गर बुतों में तू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
ख़ालिद हसन क़ादिरी
शेर
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
शेर
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
साहिर लुधियानवी
शेर
शु’ऊर-ए-तिश्नगी इक रोज़ में पुख़्ता नहीं होता
मिरे होंटों ने सदियों कर्बला की ख़ाक चूमी है