aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sifat-shanaas"
क्या मस्लहत-शनास था वो आदमी 'क़तील'मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया
बहुत छोटा सफ़र था ज़िंदगी कामैं अपने घर के अंदर तक न पहुँचा
कोई भी रस्ता किसी सम्त को नहीं जाताकोई सफ़र मिरी तकमील करने वाला नहीं
मिरी तमन्नाओं का सफ़र किस क़दर हसीं हैकभी मयस्सर है तेरा शाना कभी जबीं है
चलते रहे तो कौन सा अपना कमाल थाये वो सफ़र था जिस में ठहरना मुहाल था
न जाने कौन अपाहिज बना रहा है हमेंसफ़र में तर्क-ए-सफ़र का ख़याल क्यूँ आया
मिरे हमराह क्यूँ वो शख़्स चलना चाहता हैसफ़र के जोश में क्या आगही गुम हो गई है
तमाम शहर जिसे छोड़ने को आया हैवो शख़्स कितना अकेला सफ़र पे निकलेगा
तमाम-शहर जिसे छोड़ने को आया हैवो शख़्स कितना अकेला सफ़र पे निकलेगा
हम-सफ़र ज़ीस्त का सूरज को बनाए रक्खाअपने साए से ही क़द अपना बढ़ाए रक्खा
न कोई शहर न रस्ता न सफ़रमुंतशिर ज़ेहन की उलझी घातें
मैं और मेरा शौक़-ए-सफ़र साथ हैं मगरये और बात है कि सफ़र हो गए तमाम
सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आयामाँगी थीं दुआएँ तो असर क्यूँ नहीं आया
चाँद है तेरा हम-सफ़र कोई नहीं है राहबरआगे क़दम बढ़ा के रख दूर की रौशनी न देख
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