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शेर
मुद्दतों आँखें वज़ू करती रहीं अश्कों से
तब कहीं जा के तिरी दीद के क़ाबिल हुआ मैं
इरशाद ख़ान सिकंदर
शेर
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
शेर
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ख़याल-ए-अज़्मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख