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शेर
सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइ'ज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
शेर
चुपके चुपके उठ रहा है मध-भरे सीनों में दर्द
धीमे धीमे चल रही हैं इश्क़ की पुरवाइयाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
जाने कितनी बार सिक्कों को गिना करते थे हम
नोट की गड्डी ने हम से रेज़गारी छीन ली