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शेर
दिल में जब से देखता है वो तिरी तस्वीर को
नूर बरसाता है अपनी चश्म-ए-तर से आफ़्ताब
महाराजा सर किशन परसाद शाद
शेर
मैं तो हिजाब में भी तुझे देखता रहा
पर्दा उठा के क्यूँ मिरी मिट्टी ख़राब की
सर फ्लोरेंस फेलिज़ मतलूब
शेर
मोती पिरो के ज़ुल्फ़ में अख़्तर बना दिए
तू ने अँधेरी रात में तारे दिखा दिए
सर फ्लोरेंस फेलिज़ मतलूब
शेर
बादा-ए-ख़ुम-ए-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चूर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ
महाराजा सर किशन परसाद शाद
शेर
ज़िक्र से रिंदों के वाइज़ तू अभी वाक़िफ़ नहीं
ये तो हू-हक़ की सदा है शोर-ए-रिंदाना नहीं
महाराजा सर किशन परसाद शाद
शेर
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ