aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "siraa"
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवाराहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहींडोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
इक सिरा उलझी हुई डोर का हाथ आया हैदूसरे तक भी पहुँच जाऊँगा सुलझाते हुए
वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा हैमुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का
गुफ़्तुगू का कोई तो मिलता सिराफिर उसे नाराज़ कर के देखते
ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद सेऔर इंतिज़ाम-ए-मकान ओ सिरा बदलने लगा
त'अल्लुक़ात भी रेशम की तरह होते हैंउलझ गए तो सिरा उम्र भर नहीं मिलता
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने हैजाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न थासारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलेंहम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरायाद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए
देखने के लिए सारा आलम भी कमचाहने के लिए एक चेहरा बहुत
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहामगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
कोई चारह नहीं दुआ के सिवाकोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये थामुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था
सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ोकुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं
कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवाहसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया
हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करेंदुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैंख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
उस ने पूछा था क्या हाल हैऔर मैं सोचता रह गया
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