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शेर
मिरी बातों में क्या मालूम कब सोए वो कब जागे
सिरे से इस लिए कहनी पड़ी फिर दास्ताँ मुझ को
नज़्म तबातबाई
शेर
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
जिगर मुरादाबादी
शेर
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं