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शेर
बद की सोहबत में मत बैठो इस का है अंजाम बुरा
बद न बने तो बद कहलाए बद अच्छा बदनाम बुरा
इस्माइल मेरठी
शेर
शायरी में 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के ज़माना अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन
मेराज फ़ैज़ाबादी
शेर
हो न पाए जब मुकम्मल इश्क़ का क़िस्सा तो फिर
शोहरतें रहने दो अब गुम-नामियाँ ही ठीक हैं