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शेर
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
शेर
नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो
सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो
महताब हैदर नक़वी
शेर
बाँध के सफ़ हों सब खड़े तेग़ के साथ सर झुके
आज तो क़त्ल-गाह में धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़
सहर भोपाली
शेर
गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक
सफ़र लम्बा था ख़ुशबू का मगर आ ही गई घर तक