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शेर
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है
नातिक़ लखनवी
शेर
मुकम्मल दास्ताँ का इख़्तिसार इतना ही काफ़ी है
सुलाया शोर-ए-दुनिया ने जगाया शोर-ए-महशर ने
अम्न लख़नवी
शेर
नातिक़ गुलावठी
शेर
क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
ठंडे ठंडे दीदनी है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुब्ह
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
हवस की धूप में फैला है शोर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
सुना किसी ने नहीं बस्तियों में गिर्या-ए-ख़ाक
मुईद रशीदी
शेर
फ़ितरत का अगर शोर-ए-हसीं ग़ौर से सुनिए
फिर अस्ल मोहब्बत के हैं हक़दार परिंदे
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
ज़िक्र से रिंदों के वाइज़ तू अभी वाक़िफ़ नहीं
ये तो हू-हक़ की सदा है शोर-ए-रिंदाना नहीं