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शेर
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
सुनते ही हँस पड़ा वो यकबार खिलखिला कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
इस के ये मअ'नी कहे इक और सुने इंसान दो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
समझ में साफ़ आ जाए फ़साहत इस को कहते हैं
असर हो सुनने वाले पर बलाग़त इस को कहते हैं
अकबर इलाहाबादी
शेर
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
हम इख़्तियार में हैं न दिल इख़्तियार में
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं
वीरान हैं मोहल्ले सुनसान घर पड़े हैं