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शेर
ये मो'जिज़ा है मोहब्बत में सुर्ख़-रूई का
भरे जहान में मुझ बे-हुनर के चर्चे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़