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शेर
गहरे सुर्ख़ गुलाब का अंधा बुलबुल साँप को क्या देखेगा
पास ही उगती नाग-फनी थी सारे फूल वहीं मिलते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
फ़लक बेदाद करता है जो जौर ईजाद करते हैं
ग़ज़ब शागिर्द ढाता है सितम उस्ताद करते हैं
वसीम ख़ैराबादी
शेर
सीरत के हम ग़ुलाम हैं सूरत हुई तो क्या
सुर्ख़ ओ सफ़ेद मिट्टी की मूरत हुई तो क्या