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शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
लफ़्ज़ की हुरमत मुक़द्दम है दिल-ओ-जाँ से मुझे
सच तआ'रुफ़ है मिरे हर शे'र हर तहरीर का