aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ta.nge"
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हमठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैंअपने साथ इक शाम मनाया करते हैं
ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ होजान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं
अमीर-ए-कारवाँ है तंग हम सेहमारा रास्ता सब से अलग है
नया साल दीवार पर टाँग देपुराने बरस का कैलेंडर गिरा
मैं अब तो ऐ जुनूँ तिरे हाथों से तंग हूँलाऊँ कहाँ से रोज़ गरेबाँ नए नए
तंग-दस्ती अगर न हो 'सालिक'तंदुरुस्ती हज़ार नेमत है
क्या उसी का नाम है रा'नाई-ए-बज़्म-ए-हयाततंग कमरा सर्द बिस्तर और तन्हा आदमी
मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझ कोवो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था
एक तख़्ती अम्न के पैग़ाम कीटाँग दीजे ऊँचे मीनारों के बीच
गुहर समझा था लेकिन संग निकलाकिसी का ज़र्फ़ कितना तंग निकला
फूलों की ताज़गी ही नहीं देखने की चीज़काँटों की सम्त भी तो निगाहें उठा के देख
महरूम हूँ मैं ख़िदमत-ए-उस्ताद से 'मुनीर'कलकत्ता मुझ को गोर से भी तंग हो गया
रंग लाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिनमिस्ल-ए-ग़ालिब 'शाद' गर सब कुछ उधार आता गया
ये कैसे मलबे के नीचे दबा दिया गया हूँमुझे बदन से निकालो मैं तंग आ गया हूँ
तकोगे राह सहारों की तुम मियाँ कब तकक़दम उठाओ कि तक़दीर इंतिज़ार में है
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल हैकि अगर तंग न होता तो परेशाँ होता
ये जिस्म तंग है सीने में भी लहू कम हैदिल अब वो फूल है जिस में कि रंग-ओ-बू कम है
फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछोपर-ए-पर्वाज़ ही क्या जो क़फ़स को आशियाँ समझे
ज़ाहिद-ए-तंग-नज़र ने मुझे काफ़िर जानाऔर काफ़िर ये समझता है मुसलमान हूँ मैं
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