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शेर
जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की क़ीमत होती है
सबा अफ़ग़ानी
शेर
'सबा' हम ने तो हरगिज़ कुछ न देखा जज़्ब-ए-उल्फ़त में
ग़लत ये बात कहते हैं कि दिल को राह है दिल से
लाल कांजी मल सबा
शेर
नहीं मा'लूम ऐ यारो 'सबा' के दिल में क्या आया
अभी जो बैठे बैठे वो यकायक आह कर उट्ठा
लाल कांजी मल सबा
शेर
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
उड़ाओ ख़ाक सरसर बन के या बाद-ए-सबा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
पाया-ए-तख़्त-ए-सुलैमाँ का है शाएर 'मुसहफ़ी'
है उसी के ख़ातिम-ए-दस्त-ए-सुलैमाँ हाथ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं