aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "taalaa"
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दियारात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने न दिया
पूरी आवाज़ से इक रोज़ पुकारूँ तुझ कोऔर फिर मेरी ज़बाँ पर तिरा ताला लग जाए
ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब कोमुझ से कभी की जान न पहचान जाइए
दस्तक देने वाले तुझ को इल्म नहींदरवाज़े के दोनों जानिब ताला है
आ ही कूदा था दैर में वाइ'ज़हम ने टाला ख़ुदा ख़ुदा कर के
मेरी फ़िक्र की ख़ुशबू क़ैद हो नहीं सकतीयूँ तो मेरे होंटों पर मस्लहत का ताला है
तिरे जवाहिर-ए-तरफ़-ए-कुलह को क्या देखेंहम औज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर को देखते हैं
ये रोग लगा है अजब हमें जो जान भी ले कर टला नहींहर एक दवा बे-असर गई हर एक दुआ बे-असर हुई
मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँकुछ उस की शोहरतें कुछ ए'तिबार उस का है
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देनायक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँकाश तुझ को भी इक झलक देखूँ
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा 'मीर'क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बानाऔर फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हेंथा कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताबदिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
कुछ ख़ुशियाँ कुछ आँसू दे कर टाल गयाजीवन का इक और सुनहरा साल गया
काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ देंफूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगीलोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब मेंफिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
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