aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "taamiil"
किसी दरवेश के हुजरे से अभी आया हूँसो तिरे हुक्म की तामील नहीं करनी मुझे
ऐ मिरे मूनिस ओ ग़म-ख़्वार मुझे मरने देबात अब हुक्म की तामील तक आ पहुँची है
हुक्म-ए-सुल्तान की ता'मील तुम्हारे लिए हैमैं नहीं जा रहा चाहो तो ये सर ले जाओ
फ़ज़ा में चुप की सियाही घुली है आज की रातलहू से हुक्म की तामील होने वाली है
इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़यानी ये होश की दीवार गिरा दी जाए
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गयावर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती हैअपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगरतू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमेंतवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना
मोहब्बत बाँटना सीखो मोहब्बत है अता रब कीमोहब्बत बाँटने वाले तवील-उल-उम्र होते हैं
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिएजो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं
ग़म-ए-फ़िराक़ को सीने से लग के सोने दोशब-ए-तवील की होगी सहर कभी न कभी
नशेमन पर नशेमन इस क़दर ता'मीर करता जाकि गिरते गिरते बिजली आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए
इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त काआख़िर कहीं तो ख़त्म हो वीराना दश्त का
दुनिया हमें फ़रेब पे देती रही फ़रेबहम देखते रहे निगह-ए-ए'तिबार से
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करतावो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
लड़खड़ा कर गिर पड़ी ऊँची इमारत दफ़अतनदफ़अतन तामीर की कुर्सी पे खंडर जम गया
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोईआज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुकेनहीं चराग़ तो क्या बर्क़ तो चमकती है
किस तरह अपनी मोहब्बत की मैं तकमील करूँग़म-ए-हस्ती भी तो शामिल है ग़म-ए-यार के साथ
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