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शेर
क्या ख़ूब ‘बर्क़’ तू ने दिखाया है ज़ोर-ए-तब्अ
काग़ज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल के
मुंशी राम रखा बर्क़
शेर
बे-मुरव्वत तुझे आज़ुर्दा करेंगे हम लोग
ये तिरी नाज़ुकी-ए-तब्अ की ईजाद हैं सब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
न बज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
दिया है आप ने ख़ल्वत में अपनी बार किसे
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
तब्अ कह और ग़ज़ल, है ये 'नज़ीरी' का जवाब
रेख़्ता ये जो पढ़ा क़ाबिल-ए-इज़हार न था