aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tahat-al-lafz"
उड़ गई पर से ताक़त-ए-परवाज़कहीं सय्याद अब रिहा न करे
बाज़ार-ए-लफ़्ज़ में लिए कासा ख़याल काफिरते हैं हम सख़ावत-ए-मा’नी के शौक़ में
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
आज़ादी ने बाज़ू भी सलामत नहीं रक्खेऐ ताक़त-ए-परवाज़ तुझे लाएँ कहाँ से
माँगने पर क्या न देगा ताक़त-ए-सब्र-ओ-सुकूनजिस ने बे माँगे अता कर दी परेशानी मुझे
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना हैसिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
आज ज़िंदाँ में उसे भी ले गएजो कभी इक लफ़्ज़ तक बोला नहीं
वो हँसते खेलते इक लफ़्ज़ कह गया 'बानी'मगर मिरे लिए दफ़्तर खुला मआनी का
हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपनाअभी सुकूँ से किए जाओ इंतिज़ार अपना
मौत क्या एक लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नीजिस को मारा हयात ने मारा
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँआई न मगर ताक़त-ए-परवाज़ अभी तक
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती हैरौशनी में पढ़ा जाता है सहीफ़ा मेरा
कम ज़रा न होने दी एक लफ़्ज़ की हुरमतएक अहद की सारी उम्र पासदारी की
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भीतो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँआँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्यादवर्ना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
मअनी न आएँ दर्क में ग़ैर-अज़-वजूद-ए-लफ़्ज़आरे दलील-ए-राह-ए-हक़ीक़त मजाज़ है
वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरतहर एक लफ़्ज़ हर इक नक़्श की अदा देखूँ
जो एक लफ़्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफ़ूज़मैं उस के हाथ में पूरी किताब क्या देता
अदा हुआ है जो इक लफ़्ज़ बे-असास न होमिरा ख़ुदा कहीं मेरी तरह उदास न हो
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