aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tair"
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छीजिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखोकोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में
चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सादिल की कश्ती तैर रही है खुले समुंदर में
कोई ताइर इधर नहीं आताकैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई
अकेले पार उतर के बहुत है रंज मुझेमैं उस का बोझ उठा कर भी तैर सकता था
हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बतताइर को क़फ़स से भी कहीं हो है मोहब्बत
फ़ज़ा में उड़ते परिंदे की ख़ैर हो यारबकि उस का तैर बड़ा है मगर कमान है तंग
मेरी तरफ़ से ख़ातिर-ए-सय्याद जमा हैक्या उड़ सकेगा ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर कहीं
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम नेक़फ़स से ताइर-ए-इदराक निकला
कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय हैजिधर कमाँ है उधर जाएगा कभी न कभी
ताइर-ए-अक़्ल को मा'ज़ूर कहा ज़ाहिद नेपर-ए-पर्वाज़ में तस्बीह का डोरा बाँधा
'मासूम' अजब है हाल-ए-चमन हर शोले का यहाँ बदला है चलनशाख़ों को जलाया जाता है ताइर को सताया जाता है
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द केताइर-ए-दिल को हमारे राम-दाना चाहिए
ताइर-ए-ख़स्ता-बाल को दाम भी कुंज-ए-आशियाँमुर्ग़-ए-चमन-नवर्द को गोशा-ए-आशियाँ भी दाम
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखाउस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता हैअजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
काम की बात मैं ने की ही नहींये मिरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैंदेखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा करसरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश कोये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
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