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शेर
आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल
शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
ये क्या जाने कि चुप रह कर भी की जाती हैं तक़रीरें