aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tal.at"
याद के ख़ुशनुमा जज़ीरों मेंदिल की आवारगी सी रहती है
हर एक रात के पहलू से दिन निकलता हैवो लोग कैसे सँवर जाएँ जो तबाह नहीं
हमें हद्द-ए-अदब ने मार डालाकि दुश्मन उम्र में हम से बड़ा है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँकाश तुझ को भी इक झलक देखूँ
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा 'मीर'क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हेंथा कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताबदिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस करमुसलमानी में ताक़त ख़ून ही बहने से आती है
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगीलोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिरहाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब मेंफिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंसजो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं
अपनी तरफ़ तो मैं भी नहीं हूँ अभी तलकऔर उस तरफ़ तमाम ज़माना उसी का है
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े सेमगर सभी को शिकायत हवा से होती है
तलाक़ दे तो रहे हो इताब-ओ-क़हर के साथमिरा शबाब भी लौटा दो मेरी महर के साथ
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब हैया अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को
रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अनारोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है
बहार आए तो मेरा सलाम कह देनामुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
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