aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "talvaa"
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
खींचो न कमानों को न तलवार निकालोजब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दियारात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने न दिया
बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवाकीजिए क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो
ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ताइस चाल पर चलेगी तलवार रफ़्ता रफ़्ता
बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा थामैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था
छुरी का तीर का तलवार का तो घाव भरालगा जो ज़ख़्म ज़बाँ का रहा हमेशा हरा
अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगलीनादान हो तलवार से खेला नहीं करते
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिलबहाने से मुझे भी टालता है
पूरी आवाज़ से इक रोज़ पुकारूँ तुझ कोऔर फिर मेरी ज़बाँ पर तिरा ताला लग जाए
पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वोइस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी हैये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है
वो हाथ में तलवार लिए सर पे खड़े हैंमरने नहीं देती मुझे मरने की ख़ुशी आज
जब चली अपनों की गर्दन पर चलीचूम लूँ मुँह आप की तलवार का
शाख़-ए-उरियाँ पर खिला इक फूल इस अंदाज़ सेजिस तरह ताज़ा लहू चमके नई तलवार पर
करती है मुझे क़त्ल मिरे यार की तलवारतलवार की तलवार है रफ़्तार की रफ़्तार
अभी मियान में तलवार मत रखो अपनीअभी तो शहर में इक बे-क़ुसूर बाक़ी है
ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब कोमुझ से कभी की जान न पहचान जाइए
ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़तलवार के बाँधे से तो क़ातिल नहीं होता
तीर ओ तलवार से बढ़ कर है तिरी तिरछी निगहसैकड़ों आशिक़ों का ख़ून किए बैठी है
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