aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tamannaa-e-vasl-e-m.anaa"
बस एक पल की तमन्ना-ए-वस्ल की ख़ातिरतमाम 'उम्र लगा दी गई सँवरने में
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटीतू मुझे आज़माएगा कब तक
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आयाजला दो काट के इस नख़्ल में न बार आया
अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसेवो ताज़ा-दम रहा मुझ को निढाल कर के भी
कहना किसी का सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल नाज़ सेहसरत तुम्हारी जान हमारी निकल गई
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रातहाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वालेये भी कोई वक़्त है हया का
किस से अब आरज़ू-ए-वस्ल करेंइस ख़राबे में कोई मर्द कहाँ
सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथमेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीबपिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक
कितनी नादीदा बहारों की तमन्ना-ए-जवाँदामन-ए-जाँ में मिरे आग लगा देती है
यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनोंये मरहले एक से कड़े हैं
विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागानाहज़ार बार तू जा सद-हज़ार बार आ जा
शब-ए-वस्ल घबरा के कहना किसी काबता दीजिए हम से क्या कीजिएगा
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दोमुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो
शब-ए-वस्ल की क्या कहूँ दास्ताँज़बाँ थक गई गुफ़्तुगू रह गई
पता नहीं ये तमन्ना-ए-क़ुर्ब कब जागीमुझे तो सिर्फ़ उसे सोचने की आदत थी
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ थाबग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था
कहाँ हम कहाँ वस्ल-ए-जानाँ की 'हसरत'बहुत है उन्हें इक नज़र देख लेना
वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्लनई किताब का एक इक वरक़ पुराना था
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