aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tanziim"
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँपहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र देहाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गयाइतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहींइश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुएहक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
ये एक बात समझने में रात हो गई हैमैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँमैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़ेतुझ से हो कर हम ख़फ़ा ख़ुद से ख़फ़ा रहने लगे
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगरतू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले लेदिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिलजिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैंवो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीमनिगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करताहमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझेवर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँसमुंदरों से अकेले में बात करनी है
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घरये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
तुझ को पाने में मसअला ये हैतुझ को खोने के वसवसे रहेंगे
पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थेमैं जंगल में पानी लाया करता था
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँवो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
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