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शेर
ये जो हम तख़्लीक़-ए-जहान-ए-नौ में लगे हैं पागल हैं
दूर से हम को देखने वाले हाथ बटा हम लोगों का
अभिषेक शुक्ला
शेर
मैं जागते में कहीं बन रहा हूँ अज़-सर-ए-नौ
वो अपने ख़्वाब में तश्कील कर रहा है मुझे