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शेर
बे-तकल्लुफ़ आ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
रह गया पास-ए-अदब से क़ाफ़िया आदाब का
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन
हमारी क़ब्र पर जब मजमा-ए-अहल-ए-सुख़न होगा
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
खालिद इरफ़ान
शेर
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ पे मौक़ूफ़ नहीं लुत्फ़-ए-सुख़न
आँख ख़ामोश अगर है तो ज़बाँ कुछ भी नहीं