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शेर
हट के रू-ए-यार से तज़ईन-ए-आलम कर गईं
वो निगाहें जिन को अब तक राएगाँ समझा था मैं
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
तस्ख़ीर-ए-चमन पर नाज़ाँ हैं तज़ईन-ए-चमन तो कर न सके
तसनीफ़ फ़साना करते हैं क्यूँ आप मुझे बहलाने को
शिबली नोमानी
शेर
जुदा हो मुझ से मिरा यार ये ख़ुदा न करे
ख़ुदा किसी के तईं दोस्त से जुदा न करे
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
शेर
ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब
बढ़ता है और ज़ौक़-ए-गुनह याँ सज़ा के ब'अद