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शेर
कहें हम बहर-ए-बे-पायान-ए-ग़म की माहियत किस से
न लहरों से कोई वाक़िफ़ न कोई थाह जाने है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीरा लट पटा है
क्या क़त्ल कूँ हमारे अब ठाठ यूँ ठठा है