aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "thikaanaa"
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगहमुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्यावहशी को सुकूँ से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या
ठिकाना पूछते हैं सब तुम्हारा मुझ से आ आ करकोई तस्वीर दो ऐसी लगा दूँ मैं दर-ए-दिल पर
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगापरिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए
कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदामकुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया
क़ासिदा हम फ़क़ीर लोगों काइक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें
नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल कादर्द उठ उठ के बताता है ठिकाना दिल का
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर लेहम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे
ऐसी ज़िद का क्या ठिकाना अपना मज़हब छोड़ करमैं हुआ काफ़िर तो वो काफ़िर मुसलमाँ हो गया
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए थातो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदाख़ुदा आबाद रखे मैं तो कहता हूँ जहन्नम को
फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम कोमकाँ की नीव ज़मीं से हटा के रक्खी थी
हाँ दिल-ए-बे-ताब चंदे इंतिज़ारअम्न-ओ-राहत का ठिकाना और है
उस मुसाफ़िर की नक़ाहत का ठिकाना क्या हैसंग-ए-मंज़िल जिसे दीवार नज़र आने लगे
शायद उदास शाख़ों से लिपटा हुआ मिलेअपनी गली में उस का ठिकाना भी है अजब
किस से मैं उन का ठिकाना पूछतासामने ख़ाली मकाँ था और मैं
हवा के रहम-ओ-करम पर हूँ बे-ठिकाना हूँशजर से टूटा हुआ एक ज़र्द पत्ता हूँ
क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकानाउस शहर में रहते हैं जहाँ घर नहीं होता
हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमारकुछ ठिकाना है भला इस जज़्बा-ए-तामीर का
दो-जहाँ पाने का आ राज़ बताऊँ तुझ कोजा किसी प्यार-भरे दिल में ठिकाना कर ले
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