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शेर
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का
वो कली जो शाख़ से गिर गई वो सबा की गोद में पल गई
गुलनार आफ़रीन
शेर
ये भी इक धोका था नैरंग-ए-तिलिस्म-ए-अक़्ल का
अपनी हस्ती पर भी हस्ती का हुआ धोका मुझे
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
'नसीर' अब हम को क्या है क़िस्सा-ए-कौनैन से मतलब
कि चश्म-ए-पुर-फुसून-ए-यार का अफ़्साना रखते हैं
शाह नसीर
शेर
किस के बदन की नर्मियाँ हाथों को गुदगुदा गईं
दश्त-ए-फ़िराक़-ए-यार को पहलू-ए-यार कर दिया
आतिफ़ वहीद यासिर
शेर
सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए