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शेर
वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी
ये महशर है यहाँ सुननी पड़ेगी दास्ताँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
शेर
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
अहल-ए-मअ'नी की जुदा होवे है तक़रीर का डोल