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शेर
हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका
जो पहुँचा दे लब-ए-साहिल उसी को नाख़ुदा समझो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
बिखरते जिस्म ले कर तुंद तूफ़ानों में बैठे हैं
कोई ज़र्रे की सूरत है कोई टीले की सूरत है
अफ़ज़ल मिनहास
शेर
अपनी ज़िंदगानी के तुंद-ओ-तेज़-रौ धारे
कुछ मिज़ाज-ए-दिलबर की बरहमी से मिलते हैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
किस क़दर तुंद भरी है मिरे पैमाने में
कि छिड़क दूँ तो लगे आग अभी मयख़ाने में
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
शेर
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए