aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tuul-e-amal"
मेरे तूल-ए-शब-ए-जुदाई कोतेरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ क्या जाने
दावा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप कोतूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ को तो नाप दीजिए
तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिएमहशर तलक कहूँ मैं अगर मुख़्तसर कहूँ
तूल-ए-ग़म-ए-हयात से घबरा न ऐ 'जिगर'ऐसी भी कोई शाम है जिस की सहर न हो
देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँवस्ल के रोज़ से भी उम्र मिरी कम हो जाए
कोताह उम्र हो गई और ये न कम हुईऐ जान आ के तूल-ए-शब-ए-इंतिज़ार देख
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारीजहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले करसफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने
दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछकभू दरिया कभू सफ़ीना है
ये साल तूल-ए-मसाफ़त से चूर चूर गयाये एक साल तो गुज़रा है इक सदी की तरह
अपना तो तूल-ए-उम्र से घबरा गया है जीघर पहुँचें हम तमाम भी हो ये सफ़र कहीं
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देखहुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमलइक क़यामत पे इंहिसार नहीं
हुस्न के नाज़ उठाने के सिवाहम से और हुस्न-ए-अमल क्या होगा
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिनशुमार नामा-ए-आमाल में नहीं करते
हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमारपत्थर भी तोड़िए तो सलीक़े से तोड़िए
जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़कातिब-ए-आमाल पाएँगे न फ़ुर्सत काम से
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताजज़िंदगी भी हमें दरकार थी मरने के लिए
ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होताशीशा इक रोज़ तो वाइज़ के बग़ल में होता
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमलआप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
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