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शेर
अमजद इस्लाम अमजद
शेर
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
शेर
मुद्दतों बाद जो इस राह से गुज़रा हूँ 'क़मर'
अहद-ए-रफ़्ता को बहुत याद किया है मैं ने
क़मर मुरादाबादी
शेर
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-वफ़ा गया