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शेर
वारफ़्ता हूँ ऐसा में कि कूचे में बुताँ के
ठहराऊँ जो टुक दिल को तो फिर पाँव उखड़ जाए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया