aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "umDii"
फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने सेवीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से
वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर-ए-मक़्तलउसी की दीद को हम भी सुतून-ए-दार तक आए
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम करआस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसूतिरी सुब्ह कह रही है तिरी रात का फ़साना
ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दरआरज़ू की आरज़ू होने लगी
जो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँमैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ
सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लतख़ुशबू उड़ी तो फूल फ़क़त रंग रह गया
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती हैतुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
बे-फ़िक्र रहो यारो मैं आज भी हूँ बर्बाददिन फिर गए हैं मेरे अफ़्वाह उड़ी होगी
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहींकौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगीकुछ हम भी तन्हाई के आदी हो जाएँगे
ख़ुश-आमदीद वो आया हमारी चौखट परबहार जिस के क़दम का तवाफ़ करती है
मैं ने आबाद किए कितने ही वीराने 'हफ़ीज़'ज़िंदगी मेरी इक उजड़ी हुई महफ़िल ही सही
बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद हैना-उमीदी हो तो फिर आराम की उम्मीद है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैंएक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगरएक तस्कीन सी हो जाती है
रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने सेमय उड़ी जाती है साक़ी तिरे पैमाने से
मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीदना-उमीदी उस की देखा चाहिए
वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गयावर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी
हर पत्ती बोझल हो के गिरी सब शाख़ें झुक कर टूट गईंउस बारिश ही से फ़स्ल उजड़ी जिस बारिश से तय्यार हुई
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